लेखनी कविता - घाटी की चिन्ता - जगदीश गुप्त

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घाटी की चिन्ता / जगदीश गुप्त सरिता जल में पैर डाल कर आँखें मूंदे, शीश झुकाए सोच रही है कब से बादल ओढ़े घाटी। कितने तीखे अनुतापों को आघातों को सहते-सहते ...

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